RBC. Red blood cells
इन्हें Erythrocytes कहते हैं इनकी संख्या बहुत अधिक होती है कुल रुधिर कणिकाओं मैं से लगभग 99% होती है इनका व्यास 7 से 8u मोटाई लगभग 2u होती है।
यह आकार में वृत्ताकार डिस्कीरूपी उभयावतल एवं केंद्रक रहित होती है इनमें केंद्रक के अतिरिक्त माइटोकॉन्ड्रिया अन्त:दृव्यी जालिका एवं गाल्जीकाय आदि का अभाव होता है व्यस्क पुरुष में 50 से 55 लाख प्रतीक घन मीमी. और महिला में लगभग 45 लाख प्रति घन मिमी. होती है।
केंद्रक की अनूपस्थिति के कारण इनमें हिमोग्लोबिन अधिक पाया जाता है यह कणिकाओं के कोशिका द्रव्य में पाया जाता है स्वसन वर्णक का कार्य करता है हिमोग्लोबिन की प्रोटीन ग्लोबिन होती है जो हीम नामक लाल रंगा पदार्थ से जुड़ी रहती है रुधिर का लाल रंग हीम के कारण ही होता है।
हिमोग्लोबिन का प्रत्येक अनु ग्लोबिन के 4 polypeptide श्रंखलाओ तथा फेरस आयन युक्त हीम के चार अणुओं से मिलकर बनता है हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयोग करके ऑक्सिहीमोग्लोबिन नामक योगिक बनाता है इसका सयोग ऑक्सीजन के आंशिक दाब पर निर्भर करता है इनमें कार्बनिक अनहाइड्रेस भी काफी मात्रा में पाया जाता है एक स्वस्थ मनुष्य में हीमोग्लोबिन की मात्रा औसतन 12 से 16 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होती है।
erythrocytes ke nirman ki prakriya ko (Erythropoiesis) aur Haemopoiesis कहते हैं भ्रूण अवस्था में Erythrocytes का निर्माण यकृत प्लीहा थायमस आदि अंगों में होता है लेकिन व्यस्क अवस्था में इनका निर्माण लाल अस्ति मज्जा मैं होता है।
Erythrocytes का जीवनकाल 120 दिन तक का होता है नष्ट हुई लाल रुधिर कणिकाओं का विघटन प्लीहा एवं यकृत में किया जाता है इसलिए प्लीहा को रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान कहते हैं हिमोग्लोबिन के प्रोटीन भाग को एमिनो अम्लों में तोड़ा जाता है हीम समूह के लोह युक्त को यकृत मैं संग्रहित कर लिया जाता है तथा शेष भाग को बिलिरुबिन एवं Billiverdin नाम के पीत वर्ण को मैं परिवर्तित कर उत्सर्जित कर दिया जाता है।
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